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विद्यालय परिचय
सरस्वती शिशु मंदिर के स्वरुप में 1974 में रोपित नन्हा पौधा आज विशाल वटवृक्ष बनकर एक संस्थान के रूप में स्थापित है | विद्या भारती अ . भा . शिक्षा संस्थान नई दिल्ली एवं सरस्वती विद्या प्रतिष्ठान मालवा के मार्ग दर्शन में भारतीय आदर्श शिक्षण समिति , मंदसौर द्वारा संचालित भूतभावन भगवान पशुपतिनाथ की पवन नगरी व हूण विजेता सम्राट यशोधर्मन की विजयस्थली दशपुर में स्थापित यह संस्थान आज सरस्वती विद्या मंदिर सी . बी . एस . ई . , संजीत मार्ग , मंदसौर के रूप में स्वयं के भव्य , सुसज्जित , सर्वसुविधायुक्त व आधुनिक संसाधनों से परिपूर्ण भवन में प्रकृति के सुरम्य अंचल में स्थापित है |
संस्था में अत्याधुनिक शैक्षिक सुविधाएँ - सुसज्जित कक्षाकक्ष , भौतिक , रसायन , जीवविज्ञान , कृषि , कंप्यूटर की संसधानों से युक्त प्रयोगशालाएं , आंतरिक व बाह्य खेल - फुटबॉल , व्हालीबाल , हॉकी , टेबल टेनिस हेतु खेल मैदान व खेल उपकरण उपलब्ध है | यहाँ कक्षा नर्सरी से द्वादश तक सीबीएसई पाठ्य क्रम के अनुसार अध्यापन कार्य होता है , कक्षा 11 एवं 12 में गणित , जीवविज्ञान , कॉमर्स , कंप्यूटर साइंस आदि योग्य विषयों का अध्यापन योग्य , प्रशिक्षित व अनुभवी आचार्यों द्वारा किया जाता है |
विद्यालय का परीक्षा परिणाम शत प्रतिशत रहता है एवं विभिन्न बोर्ड परीक्षाओं में विद्यालय के छात्र - छात्राएं स्वर्णिम सफलता प्राप्त करते हुए प्रावीण्य सूची में स्थान प्राप्त करते है| विद्यालय से शिक्षा प्राप्त कर विभिन्न सेवाओं में पदस्थ पूर्व छात्रों पर हमें गर्व है|
विद्या मंदिर का वातावरण, भारतीय संस्कृति, संस्कार, परंपरा व जीवन मूल्यों के अनुरूप स्थापित है तथा साजसज्जा, व्यवस्थाएं, क्रियाकलाप, व शैक्षिक नियोजन बालक के सर्वांगीण विकास को ध्यान में रखकर नियोजित किया जाता है|हमारा लक्ष्य
इस प्रकार की राष्ट्रीय - शिक्षा प्रणाली का विकास करना है जिसके द्वारा ऐसी युवा पीढी का निर्माण हो सके जो हिन्दुत्वनिष्ठ एवं राष्ट्रभक्ति से ओत - प्रोत हो , शारीरिक , प्राणिक , मानसिक , बौध्दिक एवं आध्यात्मिक दृष्टी से पूर्ण विकसित हो तथा जो जीवन की वर्तमान चुनौतियों का सामना सफलतापूर्वक कर सके और उसका जीवन ग्रामों , वनों , गिरिकन्दराओं एवं झुग्गी - झोपड़ियों में निवास करने वाले दीन - दु : खी , अभावग्रस्त अपने बान्धवों को सामाजिक कुरीतियों , शोषण एवं अन्याय से मुक्त कराकर राष्ट्र जीवन को समरस , सुसम्पन्न एवं सुसंस्कृत बनाने के लिए समर्पित हो |